अनंता तुला कोण पाहु शके

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अनंता तुला कोण पाहु शके
तुला गातसा वेद झाले मुके
मतीमंद अंधा कसा तू दिसे
तुझी रूप तृष्णा मनाला असे

तुझा ठाव कोठे कळेना तरी
गमे माणसा चारूरी माधुरी
तरु वाल्लरीना भूली मी पुसे
तुम्हा निर्मिता देव कोठे वसे

फुले सृष्टीची मानसा राजिती
घरी सोयरी गुंगविती मती
सुखे भिन्नही येथे प्राणी चुके
कुठे चिन्मया ऐक्य लाभू साके

तुझे विश्व ब्रम्हान्डही नि:स्तुला
कृती गावया रे कळेना मला
भुकी बालका माय देवा चुके
तया पाजुनी कोण तोषु शके

नवी भावपुष्पे तुला वाहिली
तशी आर्पीली भक्ति बाष्पाजली
तुझ्या पद्मपत्रावरी ती स्थिरो
प्रभू कल्पना जल्पना त्या हरो
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गीत : बाकीबाब बोरकर
स्वर/संगीत : पंडित जितेंद्र अभिषेकी

गोंईंचें नाव (Remake)


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गोंयचे नाव व्हड करून ल्हान जाले म्हान,
बंदखानीची देवळा जाली लामणदिवे प्राण.
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गीत : बाकीबाब बोरक
स्वर/संगीत : पंडित जितेंद्र अभिषेकी

आयुष्याची आता...


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आयुष्याची आता झाली उजवण,
येती तो तो क्षण अमृताचा;

जे जे भेटे ते ते दर्पणीचे बिंब,
तुझे प्रतिबिंब लाडेगोडे;

सुखोत्सवे असा जीव अनावर,
पिंजर्याचे दार उघडावे;

संधिप्रकाशात अजून जो सोने,
तो माझी लोचने मिटो यावी;

असावीस पास, जसा स्वप्रभास,
जीवी कासावीस झाल्यावीण;

तेव्हा सखे आण तुळशीचे पान,
तुझ्या घरी वाण त्याची नाही;

तूच ओढलेले त्यासवे दे पाणी,
थोर ना त्याहनी तीर्थ दुजे;

वाळल्या ओठा दे निरोपाचे फूल,
भुलीतली भूल शेवटली.
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गीत : बाकीबाब बोरकर
स्वर/संगीत : सलील कुलकर्णी

तव नयनांचे दल हलले ग !


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तव नयनांचे दल हलले ग !
पानावरच्या दवबिंदूपरी
त्रिभुवन हे डळमळले ग !

तारे गळले, वारे ढळले
दिग्गज पंचाननसे वळले
गिरी ढासळले, सुर कोसळले
ऋषी, मुनी, योगी चळले ग !

ऋतुचाक्राचे आस उडाले
आभाळातुनी शब्द निघाले,
"आवर आवर अपुले भाले
मीन जळी तळमळले ग !"

हृदयी माझ्या चकमक झडली
नजर तुझी धरणीला जडली
दो हृदयांची किमया घडली
पुनरपी जग सावरले ग !
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गीतकार : बाकीबाब बोरकर
स्वर : रविंद्र साठे
*स्वर/संगीत : सलील कुलकर्णी (originally)

जीवन त्यांना कळले हो


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मीपण ज्यांचे पक्व फळापरी
सहजपणाने गळले हो
जीवन त्यांना कळले हो

जलापरी मन निर्मळ ज्यांचे
गेले तेथे मिळले हो
चराचाराचे होऊनी जीवन
स्नेहसां पजळले
जीवन त्यांना कळले हो

सिंधुसम हृदयात जयांच्या
रस सगळे आकळले हो
आपत्काली अन दीनावर
घन होऊनी जे वळले हो
जीवन त्यांना कळले हो

दूरित जयांच्या दर्शनमात्रे
मोहित होऊनी जाळले हो
पुण्य जयांच्या उजवाडाने
फुलले अन परिमळले हो
जीवन त्यांना कळले हो

आत्मदळाने नक्षत्राने
वैभव ज्यांनी तुळीले हो
सायासाविण ब्रम्ह सनातन
घरीच ज्या आढऴले हो
उरीच ज्या आढऴले हो
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गीतकार : बाकीबाब बोरकर
संगीत : भानुकांत लुकतुके
स्वर : श्यामा चित्तार व कैलाशनाथ जैस्वाल

क्या टूटा हैं ?

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क्या टूटा है अन्दर अन्दर, क्यूँ चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालों, कौन तुम्हें याद आया है

चुपके चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारों, क्या उनको समझाया है

रंग बिरंगी इस महफ़िल में, तुम क्यूं इतने चुप चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगों, क्या खोया क्या पाया है

है शेर कहाँ है खून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख्म दिखा कर हमने, महफ़िल को गरमाया है

अब ‘शेहजाद’ ये झूठ न बोलो, वो इतने बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को हभी परखो, गर इलज़ाम लगाया है
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शायर : आमिर खुसरू
फनकार : मेहंदी हसन

आपूल्या हाती नसते काही

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आपूल्या हाती नसते काही, हे समजावे
कुणी दिसे जर हात आपुले, हाती घ्यावे

कधीच नसतो मातीवरती हक्क आपुला
पाण्याने जर लळा लाविला, रुजून यावे

भिरभिरणार्‍या फुलपाखरा नसेन आशा
विसावले जर, ओजळीचे तर फूल करावे

नको याचना जीव जडवुनी बरसातीची
मेघच जाहले अनीवर, भिजून घ्यावे

नकॉच मनधरनी अर्ताची नको आर्ज़ावे
शब्दानी जर मिठी घातली, गाणे गावे
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गीत: मंगेश पाडगावकर
स्वर: अरुण दाते
संगीत: यशवंत देव

जीना यहाँ मरना यहाँ





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Mukesh

वाकल्या दिशा फुलून

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वाकल्या दिशा फुलून स्निग्ध रांग सावळा,
या गुलात, या सुरात, चंद्र गालतो गळा
पावले अशी सलील नादाती कुठून नाद ?
मी क्षिदीज वाहतो तरी जुळे न शब्द, गीत

दु:ख एक पांगळे जशी तरुणं सावली
या उरात पेटालीस, का उन्हास काहिली ?
असे कसे सुने सुने मला उदास वाटते
जशी उडून पाखरे नभात चालली कुटे ?
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गीत: ग्रेस
स्वर: अरुण दाते
संगीत: श्रीनिवास खळे

असेन मी, नसेन मी

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असेन मी, नसेन मी, तरी असेल गीत हे
फुलाफुलात येथल्या, उद्या हसेल गीत हे

हवेत ऊन भोवती सुवास धुंद दाटले
तसेच काहीसे मनी तुला बघून वाटले
तृणात फूलपाखरू तसे बसेल गीत हे

स्वये मनात जागले न सूर ताल मागते
अबोल राहुनी स्वत: अबोध सर्व सांगते
स्वये मनात जागते न सूर ताल मागते

कुणास काय ठाउके कसे कुठे उद्या असू ?
निळ्या नभात रेखिली नकोस भावना पुसू
तुझ्या मनीच राहिले तुला कळेल गीत हे
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गीत: शांता शेळके
संगीत: यशवंत देव
स्वर: अरुण दाते
राग: भैरवि


रात आधी खींचकर मेरी हथेली


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रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी,
तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी,
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे

अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,

रात आधी, खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
मैं लगा दूँ आग इस संसार में है
प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर,
जानती हो, उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ’ उजाले में अंधेरा डूब जाता,
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी,
खूबियों के साथ परदे को उठाता,
एक चेहरा-सा लगा तुमने लिया था,
और मैंने था उतारा एक चेहरा,
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने पर
ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

और उतने फ़ासले पर आज तक सौ
यत्न करके भी न आये फिर कभी हम,
फिर न आया वक्त वैसा, फिर न मौका
उस तरह का, फिर न लौटा चाँद निर्मम,
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ,
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं--
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

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कवि (पिताह:):
हरिवौन्शराय बच्चन
स्वर (बेटा):
अमिताभ बच्चन

गई वो बात की...


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गई वो बात की हो गुफ्तगू तो क्योंकर हो
कहे से कुछ न हुआ फिर कहो तो क्योंकर हो

हमारे ज़ेहन में इस फ़िक्र का है नाम विसाल
की गर न हो तो कहाँ जाएँ हो तो क्योंकर हो

अदब है और यही कशमकश तो क्या कीजे
हया है और यही गोमगो तो क्योंकर हो

तुम्हीं कहो की गुज़ारा सनम परस्तों का
बुतों की हो अगर ऎसी ही खू तो क्योंकर हो

उलझते हो तुम अगर देखते हो आईना
जो तुम से शहर में हो एक दो तो y7f6क्योंकर हो

जिसे नसीब हो रोज़-इ-सियाह मेरा सा
वो शख्स दिन न कहे रात को तो क्योंकर हो

हमें फिर उन से उमीद और उन्हें हमारी कद्र
हमारी बात ही पूछे न वो तो क्योंकर हो

गलत न था हमें ख़त पर गुमान तसल्ली का
न माना दीदा-इ-दीदार जू तो क्यूंकर हो

बताओ उस मिशा को देखकर हो मुझ को करार
यह नेश हो राग-इ-जान में फरो तो क्योंकर हो

मुझे जुनून नहीं ग़ालिब वाले बगौल-इ-हुजूर
फ़िराक-इ-यार में तस्कीन हो तो क्योंकर हो
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शायर : मिर्ज़ा ग़ालिब
फनकारा : मेहनाज़

तुम देना साथ मेरा

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जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़
जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़

ना कोई है ना कोई था ज़िंदगे में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़

हो चाँदनी जब तक रात देता है हर कोई साथ
तुम मगर अंधेरोन में ना छ्चोड़ना मेरा हाथ
हो चाँदनी जब तक रात देता है हर कोई साथ
तुम मगर अंधेरोन में ना छ्चोड़ना मेरा हाथ

जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़
ना कोई है ना कोई था ज़िंदगे में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़

वफ़ादारी की वो रस्में निभाएँगे हम तुम कस्में
एक भी साँस ज़िंदगी की जब तक हो अपने बस में
वफ़ादारी की वो रस्में निभाएँगे हम तुम कस्में
एक भी साँस ज़िंदगी की जब तक हो अपने बस में

जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़
ना कोई है ना कोई था ज़िंदगे में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़

दिल को मेरे हुआ यकीन हम पहले भी मिले कहीं
सिलसिला ये सदियों का कोई आज की बात नहीं
दिल को मेरे हुआ यकीन हम पहले भी मिले कहीं
सिलसिला ये सदियों का कोई आज की बात नहीं

जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़
जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़
ना कोई है ना कोई था ज़िंदगे में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़
तुम देना साथ मेरा ओ हुमनवाज़

भय इथले संपत नाही


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भय इथले संपत नाही मज तुझी आठवण येते
मी संध्याकाळी गातो तू मला शिकविली गीते

ते झरे चंद्र सजणाचे ती धरती भगवी माया
झाडाशी निजलो आपण झाडात पुन्हा उगवाया

तो बोल मंद हळवासा आयुष्य़ स्पर्शूनी गेला
सीतेच्य वनवसातील जणू अंगी राघव शेला

स्तोत्रात इंद्रिये अवघी गुणगुणती दुःख कुणाचे
हे सरता संपत नाही चांदणे तुझ्या स्मरणाचे
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गीत: ग्रेस
गायिका: लता मंगेशकर
संगीत: पंडित हृदयनाथ मंगेशकर

झिणि झिणी वाजे बीन

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झिणि झिणी वाजे बीन
सख्या रे, अनुदिन चीज नविन

कधी अर्थावीण सुभग तराणा
कधी मंत्रांचा भास दिवाणा
सूर सुना कधी केविलवाणा, शरणागत अतिलीन

कधी खटका, कधी रुसवा लटका
छेडी कधी प्राणांतिक घटका
कधी जीवाचा तोडून लचका
घेते फिरत कठीन

सौभाग्ये या सुरात तारा
त्यातून अचपळ खेळे पारा
अलख निरंजन वाजविणारा, सहजपणात प्रविण
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गीतकार :बा. भ. बोरकर
गायक :आशा भोसले
संगीतकार :श्रीधर फडके

ठुमरी | THUMRI - चैन कहा से पाउ

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Thumri is a common style of light classical music. The text is romantic and devotional in nature, and usually revolves around a girl's love for Krishna. The language is a dialect of Hindi called Brij bhaashaa. This style is characterized by a greater flexibility with the raag. The compositions are usually set to kaherava of 8 beats, addha tal of 16 beats, or dipchandi of 14 beats. It arose in popularity during the 19th century.

This thumbri is a combined rendition by Laxmi Shankar and Nirmala Devi. It depicts the passion of love, togetherness and feelings far from reality.

गोंईंचें नाव

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अबाकिबांची शताब्दी सद्या चालू आसा. असंख्यान पैकी एक भांग्राचो नगीना. मझ्या आनि सनंख्य गोयेन्काराचो व अखंड देश तान्का शतः प्रणाम !

*Photography: Sarbjit Singh Bahga*

हृदयाचा नाद लता आशेचा साद