रंग लाई अब मेरी


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ग़ज़ल, नज़्म या कोई मेरे ज़िंदगी मे तब आई जब हमारे अब्बाजानने ("अर्थात माझे वडील मराटी लेखक श्री. शरद दळवी") ग़ज़लो की एक एल.पि. खरीदली और....
आप सुनिए और पेहचानिये किस का एह सुरीला आवज़ और लुफ्त उठाई ये ग़ज़ल...
और हां.... मेरी उर्दू की ज़ुबान पूरितरह 'पक' नही गई.... अगर ग़लत हैं तो सर आखोपर, माफ़ कीजिए गा...
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گجل , نجم یا کوئی میرےزندگی میں تب آئی جب ھمارےاَبباجاننےگجلو کی ایک ئیل . پ . کھریدلی اور . . . . آپ سنئی اور پیہچانیہ کنکا ئیہ سریلا آوج اور لپھت اُٹھائی یہ گا . . . . اؤر ھاں. . . . میری اُردو کی زبان پورطرح \'پک\' نہی گئی . . . . اگر غلط ہیں تو سر آکھوپر , ماف کیجئی گا . . .

ये न थी हमारी किसमत...

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