काश ऐसा कोई मंजर होता

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काश ऐसा कोई मंजर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता...||धृ||

जमा करता जो मैन आए हुए संग
सर छुपाने के लिए घर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता... ||१||

इस पलंगदी पे बहुत तन्हा हुं
काश मै सब के बराबर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता.... ||२||

उसने उलझा दिया दुनिया मे मुझे
वर्ना एक और कलंदर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता.... ||३||
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शायर : ताहिर फ़राज़
मौसिकार : हरिहरन
फनकार : हरिहरन

मैं आवारा...

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आज भी हैं मेरे कदमोन के निशान आवारा
तेरी गालीयोन मे भटकते थे जहां आवारा
आवारा.... आवारा ....आवारा ....आवारा ....

तुझ से क्या बीछडे तो
ये हो गई अपनी हालत
जैसे हो जाए मे हवओन मे धुवां आवरा
तेरी गालीयोन मे भटके थे जहान आवारा
आज भी हैं मेरे कदमोन के निशान आवारा !! १ C

मेरे शेरोन की थी पहचान उसी के दम से
ऊसको खोकर हुवे बेनामो निशान आवरा
तेरी गालीयोन मी भटकते थे जहान
तेरी गालीयोन मे भटके थे जहान आवारा
आज भी हैं मेरे कदमोन के निशान आवारा !! २ !!

जिसको भी चाहा उसे टुटके चाहा राशीद
कम मिलेंगे तुम्हे हम जैसे यहाँ आवारा
तेरी गालीयोन मी भटकते थे जहान
तेरी गालीयोन मे भटके थे जहान आवारा
आज भी हैं मेरे कदमोन के निशान आवारा !! ३ !!
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मौसिकार : हरिहरन
फनकार : हरिहरन