मैं कैसे कहु जाने मन


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शफ़क हो, फूल हो, शबनम हो, महताब हो तुम
नही जवाब तुम्हारा के लाजवाब हो तुम

मैं कैसे कहु जाने मन, तेरा दिल सुने मेरी बात,
यह आखो की शयही, यह होतो का उजाला,
यह ही है मेरे दिन रात, मैं कैसे कहु जाने मन

काश तुम को पॅट्स हो, तेरे रूखे रोशन से,
तारे खिले है, दिए जले है,
दिल में मेरे कैसे कैसे

माहेक्ने लगी है वही से मेरी राते,
जहा से हुआ तेरा साथ,
मैं कैसे कहु जाने मन

पास तेरे आया था, में तो काटो पे चल के,
लकिन यहा तो कदमो के नीचे,
फर्श बीच गये गुल के

के अब ज़िंदगानी है, कसमे बहरा,
लो हाथो रहे तेरा हाथ

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फनकार : जगजीत सिंह