गई वो बात की...


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गई वो बात की हो गुफ्तगू तो क्योंकर हो
कहे से कुछ न हुआ फिर कहो तो क्योंकर हो

हमारे ज़ेहन में इस फ़िक्र का है नाम विसाल
की गर न हो तो कहाँ जाएँ हो तो क्योंकर हो

अदब है और यही कशमकश तो क्या कीजे
हया है और यही गोमगो तो क्योंकर हो

तुम्हीं कहो की गुज़ारा सनम परस्तों का
बुतों की हो अगर ऎसी ही खू तो क्योंकर हो

उलझते हो तुम अगर देखते हो आईना
जो तुम से शहर में हो एक दो तो y7f6क्योंकर हो

जिसे नसीब हो रोज़-इ-सियाह मेरा सा
वो शख्स दिन न कहे रात को तो क्योंकर हो

हमें फिर उन से उमीद और उन्हें हमारी कद्र
हमारी बात ही पूछे न वो तो क्योंकर हो

गलत न था हमें ख़त पर गुमान तसल्ली का
न माना दीदा-इ-दीदार जू तो क्यूंकर हो

बताओ उस मिशा को देखकर हो मुझ को करार
यह नेश हो राग-इ-जान में फरो तो क्योंकर हो

मुझे जुनून नहीं ग़ालिब वाले बगौल-इ-हुजूर
फ़िराक-इ-यार में तस्कीन हो तो क्योंकर हो
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शायर : मिर्ज़ा ग़ालिब
फनकारा : मेहनाज़