एक राज़ (१९६३)


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अगर सुन ले तो इक नगमा हुज़ुर-ए-यार लाया हुउँ
वो काली चटकी की दिल टुउता पर इक झंकार लाया हुउँ
अगर सुन ले तू एक नगमा

मुझे मालूम है इतना की मैं क्या मेरी क़ीमत क्या
जो सब कुच्छ था जो कुच्छ भी नहीं ऐसा प्यार लाया हुउँ
अगर सुन ले तू इक नगमा

अचानक आ गिरी बिजली तो फिर सुरत यही निकली
उजाड़ गया दिल तो अब ज़कमों का गुलज़ार लाया हुउँ
अगर सुन ले तू इक नगमा

अजब हुउँ मैं भी दीवाना अजब है मेरा नज़राना
के उनके लिए अपनी वफ़ा का टुउता हार लाया हुउँ
अगर सुन ले तू इक नगमा
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