कैसे चुपाउँ राज़-ए-ग़म | کیسے چھپاؤ راز ا گم


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कैसे चुपाउँ राज़-ए-ग़म दीदार-ए-तार को क्या करू
दिल की तपिश को क्या करू सोज़-ए-जिगर को क्या करू ?

शोरिश-ए-आशिकी कहाँ और मेरी सादगी कहाँ
हुसं कों तेरे क्यां कहूँ अपनी नज़र कों क्यां कहूँ ?

गम का न दिल में हो गुज़र वस्ल की शब् हो यूँ बज़र
सब ये कुबील हैं मगर खौफ-ए-सहर को क्यां करूँ ?

हाल मेरा था जब बतर तब ना हुई तुम्हें खबर
बाद मेरे हवा असर अब मैं असर कों क्यां कहूँ ?
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शायर : सलीम गिलानी
फनकार : महेंदी हसन