तुम्हारा प्यार चाहिएँ


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प्यार चाहिएँ, मूज़े जीने के लिए
तुम्हारा प्यार चाहिएँ, मूज़े जीने के लिए
मूज़ को हर घड़ी दीदार चाहीए

रूप रंग पर मरता आया, सदियों से ये जमाना
मई मान की सुंदरता देखू, प्यार का मैं दीवाना
तुम्हारा प्यार.. .. ..

मेरे सिवा तुम अओर किसी को दिल में ना आने डोगी
फूलों की तो बात ही क्या है, कातों पे साथ चलॉगी
तुम्हारा प्यार.. .. ..
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चित्रपाट : मनोकामना
संगीतकार : बप्पी लहरी
स्वर : बप्पी लहरी

राग नंद - कलापिनी कोमकली


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थाट - कल्याण
जाती - पाडाव संपूर्ण
वादी स्वर - सा
संवादी - प
समय - आधी रात
आरोह - सा ग म प ध नी प ध म प सा
अवरोह - सां नी ध प म प ग म रे सा



दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है ?

 

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दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दावा क्या है

हम है मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही, ये माजरा क्या है

मैं भी मूह मे ज़ुबान रखता हूँ
काश पुच्च्ो की मुद्दा क्या है

जबकि तुझ बिन नही कोई मौजूद
फिर ये हगामा आई खुदा क्या है

ये पारी-चेहरा लोग कैसे है
गामज़ा-ओ-उष{}वा-ओ-. क्या है

शिकाने-ज़ुलाफे-आमबारी क्या है
निगाहे-चश्मे-सूरमा सा क्या है

सब्ज़-ओ-गुल कहाँ से आए है
अब्र क्या चीज़ है, हवा क्या है

हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नही जानते वफ़ा क्या है

हन भला कर, तेरा भला होगा
और दरवेश की सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नही जानता दुआ क्या है

मैने माना की कुच्छ नही ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आए, तो बुरा क्या है
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मौसिकार : जगजीत सिंह
फनकार : जगजीत सिंह और चित्रा सिंह

रिमझिम गिरे सावन


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रिमझिम गिरे सावन
सुलग सुलग जाए मॅन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी यह अगन

रिमझिम गिरे सावन
सुलग सुलग जाए मॅन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी यह अगन
रिमझिम गिरे सावन

जब घुंघरूण सी बजती हैं बूँदें
अरमान हमारे पलकें ना मूंदें
जब घुंघरूण सी बजती हैं बूँदें
अरमान हमारे पलकें ना मूंदें
कैसे देखें सपने नयन
सुलग सुलग जाए मॅन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी यह अगन
रिमझिम गिरे सावन

महफ़िल में कैसे केहदें किसीसे
दिल बाँध रहा है किस अजनबी से
महफ़िल में कैसे केहदें किसीसे
दिल बाँध रहा है किस अजनबी से
हाए करें अब क्या जतन
सुलग सुलग जाए मॅन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी यह अगन
रिमझिम गिरे सावन
सुलग सुलग जाए मॅन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी यह अगन
रिमझिम गिरे सावन
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चित्रपट : मंज़िल
स्वर : किशोर कुमार

मस्ताने हज़ारों हैं


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इन आँखों की मस्ती के, आ आ आ आ
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं
अफ़साने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के
एक तुम ही नहीं तन्हा, आ आ
एक तुम ही नहीं तन्हा उलफत में मेरी रुसवा
उलफत में मेरी रुसवा
इस शहेर में तुम जैसे
इस शहेर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं
दीवाने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के, आ आ आ
एक सिर्फ़ हुमि मई को, एक सिर्फ़ हुमि
एक सिर्फ़ हुमि मई को आँखों से पिलाते हैं
आँखों से पिलाते हैं
कहने को तो दुनिया में
कहने को तो दुनिया में मैखाने हज़ारों हैं
मैखाने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के
इस शम्म-ए-फ़रोज़ा को, आ आ
इस शम्म-ए-फ़रोज़ा को आँधी से दर्राटे हो
आँधी से दर्राटे हो
इस शम्म-ए-फ़रोज़ा के
इस शम्म-ए-फ़रोज़ा के परवाने हज़ारों हैं
परवाने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं
अफ़साने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के....
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मौसीकार : ख़य्याम
फनकार : आशा भोसले

हमारी ही मुठि में आकाश सारा


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हमारी ही मुठि में आकाश सारा
जब भी खुलेगी चमकेगा तारा
कभी ना ढले जो, वो ही सितारा
दिशा जिस से पहचाने संसार सारा

हथेली पे रेखाएँ हैं सब अधूरी
किस ने लिखी हैं नहीं जानना हैं
सुलज़ाने उन को न आएगा कोई
समज़ना हैं उनको ये अपना करम हैं
अपने करम से दिखाना हैं सब को
खुद का पनपना, उभरना हैं खुद को
अंधेरा मिटाए जो नन्हा शरारा
दिशा जिस से ...

हुमारे पीच्चे कोई आए ना आए
हूमेई ही तो पहले पहुचना वाहा हैं
जिन पर हैं चलना नई पीढ़ीयों को
उन ही रास्तों को बनाना हूमेई हैं
जो भी साथ आए उन्हे साथ ले ले
अगर ना कोई साथ दे तो अकेले
सुलगा के खुद को मिटा ले अंधेरा
दिशा जिस से ...

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भा
भ्रष्टाचार
के खिलाफ

इतने बाज़ू इतने सुर गिन ले दुश्मन ध्यान से


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India Against Corruption

जन गन मन


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जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्यविधाता
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंगा
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंगा
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तव जयगाथा

जन गण मंगलदायक जय हे
भारत भाग्यविधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे!

आप की याद आती रही रातभर

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आप की याद, आती रही रातभर
चश्मा-ये-नाम मुस्कुराती रही रातभर

रातभर दर्द की शम्मा जलती रही
गम की लाउ तारथराती रही रातभर

बासूरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बन के आती रही रातभर

याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चाँदनी ज़गमगाती रही रातभर

कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रातभर
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चित्रपट : गमन
निर्देशक : मुज़फर अली
मौसीकार : जयदेव
फनकार : छाया गांगुली

Tendulkar And Violence : Then and Now


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(Documentary)
Conceptualized & Directed by : Atul Pethe
Produced by: California Arts Association

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This documentary explores the theme of violence in Vijay Tendulkar's plays. Vijay Tendulkar is regarded as one of the greatest playwrights of modern India . Tendulkar heralded a revolution in Indian theater, both in the content and the style, by his bold themes and natural expression. He was the first Indian playwright to consistently explore the theme of violence in a direct way. This documentary examines the origin, expression and character of violence in Tendulkar's plays. Violence in his plays is explored in the context of the period of writing as well as similar attempts worldwide.
 
Makarand Sathe interviews Vijay Tendulkar, Prof. Ram Bapat, Prof. G. P. Deshpande, Shri. Nilu Phulay, Dr. Shreeram Lagoo, Dr. Jabbar Patel, Dr. Vijaya Mehta and Pt. Satyadev Dubey. The documentary includes rare archived excerpts from Tendulkar's plays Kanyadan, Sakharam Binder, Ghashiram Kotwal, Kamala and Shantata Court Chalu Aahe.


सही हुंगमी नवरा पाहिजे


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निर्देशक : विनय लाड
लेखक : शरद निफाड़कर
भारत जाधव, प्रसाद ओक, अर्चना नेवृेकर, अरुण कदम, विजय चवाण

२२ जून १८९७


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संगीतकार : आनंद मोडक

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During 1896-97, there was an outbreak of plague in Pune. Marital law was imposed. There was intense popular resentment against Mr.Rand, the British Plague Commissioner due to his harsh measures for forcibly evacuating the people.
An agitated Damodar Chapekhar and his two brothers, militant followers of Tilak, decided to take revenge. They killed Mr.Rand at night while he was returning from the Govt. House after participating in the 60th anniversary celebrations of Queen Victoria's Coronation, held on June 22, 1897.
 
A massive manhunt was launched with former colleagues as informers. Damodar was hanged, despite Tilak's personal appeal to the British. When the youngest brother, Vasudev, killed the informer, he and the remaining brother Balkrishna, were also hanged. The Chapekar brothers were among the first martyrs of India's Freedom Struggle.
 
The Chapekar brothers were among the first martyrs of India's Freedom Struggle.
A historic film and winner of two National and two State awards, 22nd June 1897 has an illustrious crew behind its making. With dialogues by Vijay Tendulkar and screenplay co-written by Shankar Nag, the film was the directorial debut of the husband-wife duo of Nachiket and Jayoo Patwardhan.

धुंद होते शब्द सारे !


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धुंद होते शब्द सारे, धुंद होत्या भावना
वार्यासंगे वाहता त्या फुलापाशी थांब ना
सई ये रमुनी सार्‍या जगात रिक्त भाव असे
कैसे गुंफू गीत हे ?
धुंद होते शब्द सारे !

मेघ दाटून गंध लहरुनि बरसला मल्हार हा
चांदराती भाव गुंतुनी बहरला निशिगंध हा
का कळेना काय झाले, भास की आभास सारे
जीवनाचा गंध हा, विश्रांत हा, शांत हा !
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गीत : कौस्तुभ सावरकर
संगीत : अमार्त्य राहुल
स्वर : रवींद्र बिजूर
चित्रपट : उत्तरायण

तेजोमय नादब्रम्ह हे


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तेजोमय नादब्रम्ह हे

रुणझुणले काळजात, लखलखले लोचनात
अंबरात अंतरात, एकरूप हे

सृष्टीचा देव्हारा, दरवळला गाभारा
सर्व दिशा कांचनमय, पवन मंद मंगलमय
आरतीत तेजाच्या विश्व दंग हे

कुसुमाच्या हृदयातून, स्नेहमय अमृतघन
चोहिकडे करुणा तव, बरसून ये स्वरलाघव
परमेशा साद घालि तुझे रूप हे
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गीतकार : प्रविण दावणे
संगीतकार : श्रीधर फडके
स्वर : आरती अंकलिकर-टिकेकर व सुरेश वाडकर

दिसलीस तू फुलले ऋतू


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दिसलीस तू, फुलले ऋतू
उजळीत आशा, हसळीस तू

उरले न आसु, विरल्या व्यथाही
सुख होऊनिया, आलीस तू

जाळीत होते मज चांदणे जे
ते अमृताचे, केलेस तू

मौनातुनी ए गाणे दिवाणे
त्याचा अनामी, स्वरभास तू

जन्मात लाभे क्षण एकदा हा
ते भाग्य माझे, झालीस तू
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गीतकार : सुधीर मोघे
संगीतकार : राम फाटक
स्वर : सुधीर फडके

शुक्रतारा


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शुक्रतारा, मंदवारा, चांदणे पाण्यातुनी
चंद्र आहे, स्वप्न वाहे, धुंद या गाण्यातुनी
आज तू डोळ्यांत माझ्या, मिसळूनी डोळे पहा
तू अशी जवळी रहा

मी कशी शब्दात सांगू, भावना माझ्या तुला
तू तुझ्या समजून घे रे लाजणार्‍या या फुला
अंतरीचा गंध माझ्या, आज तू पवना वहा

लाजर्‍या माझ्या फुला रे, गंध हा बिलगे जीवा
अंतरीच्या स्पंदनाने अन् थरारे ही हवा
भारलेल्या या स्वरांनी, भारलेला जन्म हा

शोधिले स्वप्नात मी ते, ये करी जागेपणी
दाटूनि आलास तू रे, आज माझ्या लोचनी
वाकला फांदीपरी आता फुलांनी जीव हा
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गीतकार: मंगेश पाडगांवकर
स्वर: सुधा मल्होत्रा - अरुण दाते
संगीत: श्रीनिवास खळे

माझे दिवन गाणे


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माझे दिवन गाणे, माझे दिवन गाणे !

व्यथा असो आनंद असू दे
प्रकाश किवा तिमीर असू दे
वाट दिसो अथवा न दिसू दे, गात पुढे मज जाणे !

कधी ऐकतो गीत झर्यातुन
वशवनाच्या कधी मनातुन
कधि वार्‍यातून, कधि तार्यातुन झुळझुळतात तराणे !

तो लीलाघन सत्य चिरंतन
फुलापरी उमले गीतातुन
स्वरास्वरातुन आनंदाचे नित्य नवे नजराणे !

गा विहगांनो माझ्यासंगे
सुरावरी हा जीव तरंगे
तुमच्यापरी माझ्याही स्वरातुन उसळे प्रेम दिवाणे !
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गीत : मंगेश पाडगावकर
संगीत : पु. ल. देशपांडे
स्वर : पंडित जितेंद्र अभिषेकी

शब्दावाचुन कळले सारे शब्दांच्या पलिकडले

 
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शब्दावाचुन कळले सारे शब्दांच्या पलिकडले
प्रथम तुला पाहियाले आणिक घडू नये ते घडले

अर्थ नवा गीतास मिळाला
छंद नवा अन् ताल निराळा
त्या दिवशी का प्रथमच माझे सूर सांग अवघडले ?

होय म्हणालिस नकोनकोतुन
तूच व्यक्त झालीस स्वरातुन
नसता कारण व्याकुळ होऊन उगिच हृदय धडधडले

आठवले पुनावेच्या रात्री
लक्ष दीप विरघळले गात्री
मिठीत तुझीया या विश्वाचे रहस्य मज उलगडले
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गीत : मंगेश पाडगावकर
संगीत : पु. ल. देशपांडे
स्वर : पंडित जितेंद्र अभिषेकी


तपत्या झळा उन्हाच्या झेलीत चाललो मी

 

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तपत्या झळा उन्हाच्या झेलीत चाललो
मी बीज सावल्यांचे पेरीत चाललो

वैराण माळ उघडा बेचैन तळमळे
मी दान आसवांचे फेकीत चाललो

आव्हेरूनी फुलांचे अनिवार आर्जवे
काटेकुटे विखारी वेचित चाललो

दाही दिशांत वेडा वैशाख मातला
मी बाण चंदनाचे पेरीत चाललो

ए कोरड्या गळ्यात हा सूर कोठला
मी तार वेदनेची छेडित चाललो
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गीत : सुधीर मोघे
संगीत : राम फाटके
स्वर : पंडित जितेंद्र अभिषेकी

गोजिरी


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चित्रपाट : गोजिरी (२००७)
निर्देशक : मानसी मेनहेनद्रे

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Tatya - Arun Nalawade lives a middle-class lifestyle in a small village of the Konkon Maharashtra, along with his daughters, Gojiri - Madhura Velankar and mentally challenged Suha. On Suha's birthday, while picking mangoes, Gojiri falls down the tree, hurts her head, and is hospitalized. Because of the accident Gojiri damages her temporal lobe and as a result the contact between her short and long term memory has been lost, so she can only remember what occurred the day before, and will virtually re-live her life as 'groundhog' days. One fine day Shikarerao - Sunil Barve comes to this village and falls in love with Gojiri and would like to marry her. He finds Gojiri receptive and even proposes to her through Nanu - Abhijeet Chavan, his real estate agent, who is attempting to sell Shikare rao's 'haunted' property. Nanu tells him the truth about Gojiri, but he is smitten and is unable to let go. Watch what happens when Shikarerao persists in wooing Gojiri, is beaten by angry youth, and then reprimanded by the village elders/Panchayat for insulting and molesting Gojiri, and the impact this will have on him, Tatya and Gojiri herself?

मी मन आणि द्रुव


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 निर्देशक : आदिती देशपांडे

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Ranjeet (Mahendra Agashe) is a hard working journalist and is married to Mann (Ketaki Thatte), his childhood sweet heart. Ranjeet is a complete family man, loves his wife and has a son named Dhruv (Dhruv Pendse). Trouble brews in their family, when Mann decides to take up a career and with the influence of her friend (Smita Tambe) takes up a job in Bangalore, away from her husband and child. Ranjeet is shattered by his wife's choice but his focus on writing makes him a successful writer. But will Mann return to her husband and son? Will the family tension lead to a divorce? Can their marriage be saved for the sake of their son?

उसना नवरा


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वार्‍याने हलते रान


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वार्‍याने हलते रान
तुझे सूनसान
हृदय गहिवरले
गायीचे डोळे करून उभे कि
सांज निळाईतले

डोळ्यात शीण
हातात  वीण
देहात फुलाच्या वेगी
अंधार चुकवा म्हणून
निघे बैरागी

वाळूत पाय
सजतेस काय
लातंध समुद्र काठी
चरणतला हरवला गंध
तीझुं कि ओठी ?

शून्यात गर्गरे झाड
तशी ओढाळ
दिव्यांची नगरी
वृक्षात तिथीचा चांद
तुझा कि वैरी
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गीत : ग्रेस
संगीत :  पं. हृदयनाथ मंगेशकर
स्वर :  पं. हृदयनाथ मंगेशकर

सुचवाल का ह्या कोकिळा ?

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कुणि जाल का, सांगाल का, सुचवाल का ह्या कोकिळा ?
रात्री तरी गाउ नका, खुलवू नको आपुला गळा

आधीच संध्याकाळचा बरसात आहे लांबली
परत जाता चिंब चुंबन देत दारी थांबली
फार पूर्वीच दिला तो श्वास साहून वाळला
आताच आभाळातला काळोख मी कुरवाळला

सांभाळुनी माझ्या जिवाला मी जारासे घेतले
इतक्यात येता वाजली हलकी नीजेची पावले
सांगाल का त्या कोकिळा, की झार होती वाढली
आणि द्याया दाद कोणी रात्र जागून काढली
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गीत : आ. रा. देशपांडे "अनिल"
संगीत : यशवंत देव
स्वर : पंडित वसंत्राओ देशपांडे

राहिले ओठातल्या ओठात वेडे शब्द माझे

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राहिले ओठातल्या ओठात वेडे शब्द माझे
भेट होती आपुली का ती खरी, कि स्वप्न माझे ?

कापले ते हात हाती बावरे डोळ्यात आसू
आग पाण्यातून पेटे जाळणारे गोड हासू
दोन थेंबांच्या क्षणांचे प्रीतीचे तकदीर माझे

गर्द हिर्वे पाचपाणी रक्तकमले कुंकुमाची
खेळताना बिंबलेली शुभ्र जोडीसार सांची
आठवे ? म्हटलेस ना तू ? हे हवेसे विश्व माझे

मी म्हणू कैसे, फुला रे, आज तू नाहीस येथे
वेळ दारी सावलीची रोज असुनी बार देते
लाख पुष्पे तोडिल्याविण ये भरोन पात्र माझे
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गीत : वा. रा. कांत
संगीत : श्रीनिवास खळे
स्वर : पंडित वसंतराव देशपांडे

स्वर आले दुरुनी


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स्वर आले दुरुनी
जुळल्या सगळ्या त्या आठवणी

निर्जीव उसासे वार्याचे
आकाश फिकटल्या तार्यांचे
कुजबुजही नव्हती वेलींची
हितागुजाही नव्हते पर्णांचे
ऐशा थकलेल्या उद्धयानी

विरहार्त मनाचे स्मित सरले
गालावर आसू ओघळले
होता हृदयाची दो शकले
जखमेतून क्रंदन पाझरले
खाली फुंकर हललेच कुणी

पडसाद कसा आला न काळे
अवसेत कधी  का तम उजळे
संजीवन मिळता आशेचे
निमिषात पुन्हा जग सावरले
किमया असली का केली कुणी ?
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गीत : यशवंत देव
संगीत : प्रभाकर जोग
स्वर : सुधीर फडके

ये बातें झुटि बातें हैं


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ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं

तुम इंशजी का नाम ना लो
क्या इंशजी सौदाई हैं
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें

है लाखों रोग ज़माने में
क्यों इश्क़ है रुसवा बेचारा
हैं और भी वजे वहशत की
इंसान को रखती दुखियारा
हन बेकल बेकल रहता है
वो प्रीत में जिस ने दिल हरा
पर शाम से लेकर सुबो तलाक़
यून कौन फिरे है आवारा
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें

गर इश्क़ किया है तब क्या है
क्यों शाद नहीं आबाद नहीं
जो जाम लिए बिन चल ना सके
ये ऐसी भी उस्ताद नहीं
फाइंड मोरे लिरिक्स अट ववव.स्वीत्सल्यरीक्स.कॉम
ये बात तो तुम भी मानो गे
वो कैस नहीं फरहाद नहीं
क्या हिजर का दारू मुश्किल है
क्या फास्ल मुस्ते याद नहीं
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें

जो हम से कहो हम करते हैं
क्या इंशा को समझना है
उस लड़की से भी कहलेंगे
गो अब कुच्छ और ज़माना है
या छ्चोड़ें या तकमील करें
ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख धनदा है
ये कैसा तानाबाना है
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं

तुम इंशजी का नाम ना लो
क्या इंशजी सौदाई हैं
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें
ये बातें, ये बातें
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फनकार/मौसीकार : गुलाम अली

दिल की बात लबों पर लाकर


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दिल की बात लबों तक लाकर अब तक दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं

बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आसू बहते हैं

एक ह्यूम आवारा केहेना कोई बड़ा इल्ज़ाम नही
दुनिया वाले दिल वालों को और बहूत कुछ कहते हैं

जिसकी खतीर शहर भी चोरदा जिसके लिए बदनाम हुए
आज वोही हुंसे बेगाने बेगाने से रहते हैं

वो जो अभी रहगीज़ार से चक-ए-ग़रेबान गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को "जालीब जालीब कहते हैं
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शायर : हबीब ज़ालीब
फनकार/मौसीकार : गुलाम अली

घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस


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घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस
घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस
थोडे  घेऊन ठेवून मग थोडे निघाला दिवस
थोडे घेऊन ठेवून  पुढे  निघाला दिवस
घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस

असे  मुख मावळतीचे उदास उदास
तसा गार वारा वाहे जसा खोल श्वास
असे  मुख मावळतीचे उदास उदास
तसा गार वारा वाहे जसा खोल श्वास श्वास
दूरच्या दिव्यांना देत निघाला दिवस
श्वास दूरच्या दिव्यांना देत निघाला दिवस
घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस

विझवूनी  दिवसाचा दीप पेटवून रात
पडे देह अवनीचा या तमाच्या कुशीत
विझवूनी दिवसाचा दीप पेटवून रात
पडे देह अवनीचा या तमाच्या कुशीत
थोडा अधिरसा श्वास थोडा दिलासा दिवस
घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस

आता गाऊ द्यावे गाणे जसे गाऊ वाटे
अंगणात येतील स्वप्ने पहाटे पहाटे
आता गाऊ द्यावे गाणे जसे गाऊ वाटे
अंगणात येतील स्वप्ने पहाटे पहाटे
गावं मन नाव ज्याचे त्याची ढासळती वेस
गावं मन नाव ज्याचे त्याची ढासळती वेस
घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस
थोडे घेऊन ठेवून पुढे  मग निघाला दिवस

घेत निरोप नभाचा मग निघाला दिवस
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गीत : शैलेश रानडे
स्वर / संगीत : डॉ. सलील कुलकर्णी

ज्ञानीयांचे ध्येय


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ज्ञानीयांचे ध्येय
पुंडलीकाचे प्रिय सुखवस्तू
ते हे संचरण उभे विठेवरी
पाहा भीमातीरी विठ्ठालरूप || धृ ||

जे तपसवीयांचे तप, जे जपकांचे जाप्य
योगियांचे गौप्य परमधाम
जे तेजकांचे तेज, जे गुरूमंत्रांचे गूज
पूजकांचे पुज्य कुलदयवत || १ ||

जे जीवनात जिबवीते, पवनाते नीववीते
जे भक्तांचे उगवीते मायाजाळ
नामा म्हणे ते सुखाची आयाते
जोडले पुंडलिकते भाग्यायोगे || २ ||
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गीत : संत नामदेव
स्वर / संगीत : सलील कुलकर्णी

खूबरूयों से यारियाँ ना गयीं


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फनकार और मौसीकार
गुलाम अली

राग मालकौंस


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स्वर : पं. उपेंद्र भट
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Malkaush (also spelled Malkauns) is a raga in Indian classical music. It is one of the most ancient ragas of Indian classical music. The equivalent raga in Carnatic music is called Hindolam, not to be confused with the Hindustani Hindol.

The name Malkaush is derived by the combination of Mal and Kaushik, which means he who wears serpents like garlands—the god Shiva. However, the Malav-Kaushik mentioned in classical texts does not appear to be the same as the Malkauns performed today. The raga is believed to have been created by goddess Parvati (the wife of Shiva) to calm Shiva, when the lord Shiva was outraged and was not calming down after Tandav in rage of Sati's sacrifice.
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Thaat
Bhairavi

Jaati
Audav - Audav

Vadi Swar
म (मध्यम )

Samvadi Swar
सा (षडाज)

Time
Third half of the night

Aaroh
नि॒॰ सा, ग॒ म, ध॒ नि॒ सां ।

Avroh
सां नि॒ ध॒ म ग॒ म ग॒ सा ।

Pakad
म, ग॒, म ध॒ नि॒ ध॒ , म, ग॒ , सा

महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गई


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तेरी बात ही सुनाने आये, दोस्त भी दिल ही दुखाने आये
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं तेरे आने का ज़माने आये
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हो आप
महफ़िल में इस ख़याल से फिल आ गया हूँ मैं

महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गई
हमने बचाई लाख मगर फिर उधर गई

उनकी नज़र में कोई तो जादू ज़ुरूर है
जिस पर पड़ी, उसी के जिगर तक उतर गई

उस बेवफा की आँख से आंसू झलक पड़े
हसरत भारी निगाह बड़ा काम कर गई

उनके जमाल-इ-रुख पे उन्ही का जमाल था
वोह चल दिए तो रौनक-इ-शाम-ओ-सहर गई

उनको खबर करो के है बिस्मिल करीब-इ-मर्ग
वोह आयेंगे ज़ुरूर जो उन तक खबर गई
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शायर : आगा बिसमिल
मौसीकार और फनकार : गुलाम अली

राग मारू बिहाग : एक आवासीय बैठक : पंडित गणपती भट


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::राग::
::स्वर::
::आवासीय बैठक::

आरती कीजिये हनुमान की

 
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"आरती की जिये हनुमान"

सोचा था मैंने तो ऐ जान मेरी


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सोचा था मैंने तो ऐ जान मेरी
मोतियों से भर दूँगा माँग तेरी
पर कुछ ना तुझे दे सका
एक मजबूर दिल के सिवा हूँ
तड़पे दिल पलकों के पीछे कितने महल ख़ाबों के लिये \-२
खुलते कभी तो महलों के दर जलते कभी अरमाँ के दिये
तू हँसती एक गुल की तरह
मैं गाता बुलबुल की तरह हूँ

सोचा था मैंने तो ऐ जान मेरी
मोतियों से भर दूँगा माँग तेरी
कब चाहा पर्बत बन जाना देता है जो सदियों का पता \-२
चाहूँ बस एक पल का तराना बन के किसी गुँचे की सदा
खिल जाता एक पल ही सही
धूल का फिर आँचल ही सही हूँ

सोचा था मैंने तो ऐ जान मेरी
मोतियों से भर दूँगा माँग तेरी
फिर भी इस जलते सीने में अब तो यही अरमान पले \-२
चाँदी के सोने के ख़ज़ाने रख दूँ तेरे क़दमों के तले
उठता है तूफ़ान उठे
लुटती है तो जान लुटे हूँ
:आशा भोसले:  
जान-ए-मन तू अकेला नहीं
मैं तेरे साथ हूँ और सिर्फ़ तेरे साथ
:
दो:
हूँ
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चित्रपाट : चाँदी सोना
गीतकार : मजरूह सुल्तान पूरी
संगीतकार : राहुल देव बर्मन
स्वर : किशोर कुमार और आशा भोसले

मन वीणा के तार मोले

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मैं सुंदर हूँ

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ईर बीर फत्ते


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जब तेरे नैन मुस्कुराते हैं


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जब तेरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं

क्यूँ शिकन डालते हो माथे पर
भूल कर आ गए हम जाते हैं

कश्तियाँ यूँ भी डूब जाती हैं
नाख़ुदा किसलिये डराते हैं

इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं

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फनकार और मौसिकार : मेहन्दी हसन

बिन बारिष बरसात ना होगी


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बिन बारिष बरसात ना होगी
रात गयी तो रात ना होगी

राज़-इ-मोहब्बत तुम मत पूछो
मुझसे तो ये बात ना होगी

किस से दिल बहलाओगे तुम
जिस दम मेरी ज़ात ना होगी

अश्क भी अब ना पैद हुए हैं
शायम अब बरसात ना होगी

यूं देखेंगे आरिफ उसको
बीच में अपनी ज़ात ना होगी
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शायर : खालिद महमूद आरिफ़
मौसीकार/फनकार : गुलाम अली

राग आनंद भैसव


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सवाई गंधर्व, पुणे

दिल में एक ल़हेर सी उठी हैं अभी


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दिल में एक ल़हेर सी उठी हैं अभी
कोई ताज़ा हवा चली हैं अभी

शोर बरपा है खाना ए दिल में
कोई दीवार सी गिरी हैं अभी

कुच्छ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोठ भी नयी हैं अभी

भारी दुनियाँ में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी हैं अभी

तू शरीक-ए-सुख्हन नहीं हैं तो क्या
हम सुख्हन तेरी खामोशी हैं अभी

याद के बेनिशान जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही हैं अभी

शहेर के बेचराग़ गलियों में
ज़िंदगी तुझ को ढ्नडती हैं अभी

सो गये लोग उस हवेली के
एक खिडकी मगर खुली है अभी

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर मैं रात जागती है अभी

वक़्त अच्छा भीइ आएगा 'नसीर'
गम ना कर ज़िंदगीइ पा.डी है अभी
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शायर : नसीर काज़मी
फनकार/मौसीकार : गुलाम अली

तुका आकाशाएवढा


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अणुरेणिया थोकडा |
तुका आकाशाएवढा ||१||

गिळुन सांडिले कलेवर |
भव भ्रमाचा आकार ||२||

सांडिली त्रिपुटी |
दीप उजळला घाटी ||३||

तुका म्हणे आता |
उरलो उपकारापुरता ||४||

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रचना : संत तुकाराम
संगीत : राम फाटक
स्वर : पंडित भीमसेन जोशी
राग : मालकौंस

धुवा बनाके फ़िज़ाओ में


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धुवा बनाके फ़िज़ाओ में उड़ा दिया मुझको
मैं जल रहा था किसी ने ब्झहा दिया मुझको

खड़ा हून आज भी रोटी के चार हरफ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको

सफेद संग की चादर लपेट कर मुझपर
फसीने शहर से किसी ने सज़ा दिया मुझको

मैं एक ज़ररा बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीन पर गिरा दिया मुझको
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मौसीकार : जगजीत सिंग
फनकार : लता मंगेशकर