मैं अकेला.इस शहर में


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एक अकेला इस शहर में रात में और दोपहर में
आबोड़ाना ढूनडता है आशियाना ढूनडता है

दिन खाली खाली बर्तन है और रात है जैसे अँधा कुआँ
इन सूनी अंधेरी आँखों से आनसून की जगह आता हैं धुआँ
जीने की वजह तो कोई नही मरने का बहाना ढूनडता है
एक अकेला इस शहर में...

इन उमर से लंबी सड़कों को मंज़िल पे पोहॉंछते देखा नहीं
बस दौड़ती फिरती रहती हैं हुँने तो ठहेरते देखा नहीं
इस अजनबी से शहर में जाना पहेचना ढूनडता है
एक अकेला इस शहर में...

ऐतबार


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किसी नज़र को तेरा, ऐतबार आज भी हैं
कहा हो तुम के ये दिल बेकरार आज भी हैं

वो वादिया, वो फिजायँ के हम मिले थे जहाँ
मेरी वफ़ा कॅया वही पर मज़ार आज भी हैं

न जाने देख के क्यू उन को ये हुआ एहसास
के मेरे दिल पे उन्हे इकतियार आज भी हैं

वो प्यार जिस के लिए ह्युमेन छ्चोड़ डी दुनियाँ
वफ़ा की राह में घायल वो प्यार आज भी हैं

यकीन नहीं हैं मगर आज भी ये लगता हैं
मेरी तलाश में शायद बहार आज भी हैं

जीना तो है पर...

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जीना तो है पर एय दिल कहा (२)
आरे बैतू वो तो नही मिलती हैं जमी हू
मैं उड़ना चाहू तो हैं डोर आस्मा
नाराज़ कोई ना कोई मेहेर्बा
ना कही कोई बिजली ना कोई आशिया (२)
आरे बैतू तो ऊऊओ नही मिलती हैं ज़ामी हूऊऊओ
मैं उड़ना चाहू तो हैं डोर आस्मा
जीना तो है पर आए दिल कहा

जलता हैं बदन कही साया नही
किसी आँचल के बदले हैं सुलगता ढून्या (२)
आरे बैतू तो ऊऊओ नही मिलती हैं जमी हू
मैं उड़ना चाहू तो हैं डोर आस्मा
जीना तो है पर आए दिल कहा (२)