क्या टूटा हैं ?

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क्या टूटा है अन्दर अन्दर, क्यूँ चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालों, कौन तुम्हें याद आया है

चुपके चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारों, क्या उनको समझाया है

रंग बिरंगी इस महफ़िल में, तुम क्यूं इतने चुप चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगों, क्या खोया क्या पाया है

है शेर कहाँ है खून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख्म दिखा कर हमने, महफ़िल को गरमाया है

अब ‘शेहजाद’ ये झूठ न बोलो, वो इतने बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को हभी परखो, गर इलज़ाम लगाया है
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शायर : आमिर खुसरू
फनकार : मेहंदी हसन