फ़रिश्तों की नगरी में आ गया हूँ मैं


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फ़रिश्तों की नगरी में मैं आ गया हूँ मैं
आ गया हूँ मैं
ये रानाईयां देख चकरा गया हूँ मैं
आ गया हूँ मैं

यहां बसने वाले बड़े ही निराले
बड़े सीधे सादे बड़े भोले भाले
पती-पत्नी मेहनत से करते हैं खेती
तो दादा को पोती सहारा है देती
यहाँ शीरीं फ़रहाद कंधा मिला कर
हैं ले आते झीलों से नदियां बहा कर
ये चाँदी की नदियां बहे जा रही हैं
कुछ अपनी ज़ुबाँ में कहे जा रही हैं
फ़रिश्तों की नगरी में...

कन्हैया चला ढोर बन में चराने
तो राधा चली साथ बंसी बजाने
बजी बाँसुरी नीर आँखों से छलका
मुझे हो गया है नशा हल्का हल्का
परींदे मेरे साथ गाने लगे हैं
इशारों से बादल बुलाने लगे हैं
हसीं देख कर मुस्कुराने लगे हैं
कदम अब मेरे डगमगाने लगे हैं
फ़रिश्तों की नगरी में...

अरे वाह लगा है यहाँ कोई मेला
तो फिर इस तरह मैं फिरूं क्यूं अकेला
मैं झूले पे बैठूंगा चूसूंगा गन्ना
किसी का तो हूँ मैं भी हरियाला बन्ना
ओ भैय्या जी लो ये दुअन्नी संभालो
चलो मामा उतरो मुझे बैठने दो
फ़रिश्तों की नगरी में...
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शायर : केदार शर्मा
संगीतकार : स्नेहल भाटकर
फनकार : मुकेश
चित्रपट : हमारी याद आयेगी

4 Response to "फ़रिश्तों की नगरी में आ गया हूँ मैं"

  1. Mrinal Devburman Says:
    April 3, 2013 at 8:25:00 AM GMT+5:30

    Video editing was nice. Voice good.

  2. Milind Sarwate Says:
    April 3, 2013 at 8:26:00 AM GMT+5:30

    Lovely song...my favourite

  3. Shobha Kaul Says:
    April 3, 2013 at 11:16:00 PM GMT+5:30

    This reminds my childhood in Kashmir.

  4. शाल्मली गोखले Says:
    April 3, 2013 at 11:29:00 PM GMT+5:30

    आहा सुभी , गारेगार वाटलं. अप्रतिम , व्हिडीओ आणि गाणं .

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