Many times I do get confused as to which would (or could) be the language more comfortable to ‘very’ individual, first in a ‘country-wise’ way followed by across the border and beyond. In may ways I am in a ‘limited’ frame, whether by region, country or beyond. So I decided to use (in this particular context) in a common ‘international’ language in a desi style the emphasis is on local word called ‘hinglish’.
In my ‘half’ the life, beginning from the tender age of 6, music, and more particularly towards the ‘hindustaani thaaT’, I was more accustomed in a mid and north Indian environment. I was certainly to see, watch, hear as well ‘take signature’ of various Ustaad’, Begum’ and Pandit’ such as Pandit Bhimsen Joshi, Pandit Jasraaj, Pandit Vishwamohan Bhat, Pandit Mallikarjoon Mansoor, Ustaad Nijamuddin (tablaa), Begum Parvin Sultaan and any others. And yet, there are many others who are in my collections, I have not been so lucky to meet or see ‘face-to-face’ with several such. One of such is Pandit Ajay Pohankar. I have watched, heard in several Cds, concerts such as Sawai Gandharv in Pune and Kesarbai Kerkar in Goa. But ‘not’ in a ‘closer’ “feelings” of meeting face-to-face. Several times in the recent t.v. channels, I did watch him in the ‘Saa Re Ga Ma Pa’ some months ago. Followed by some selective purchase of CDs too.
I present an additional (amongst many) a Thumri (once again), in an expressive view of one amongst many thumris, by Pandit Ajay Pohankar.
The expressions variates in from forms of love and expressions along with the different change as well feelings in fluctuating seasons connected with ‘loss’ of togetherness, far from reality.
ज़िदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
جدگی میں تو سبھی پیار کیا کرتےہیں
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
میںتو مرکر بھی میری جان تجھےچاہونگا
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
تو ملا ہے تو یہ احساس ہوا ہے مجھکو
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है
یہ میری عمر موہببت کےلئے تھوڑی ہے
एक ज़रा सा ग़म-इ-दौरान का भी हक है जिस पर
ئیک زرا سا گم -ا - دوران کا بھی ھک ہے جس پر
मैंने वो सांस भी तेरे लिए रख छोड़ी है
میںنے وہ سانس بھی تیرےلئے رکھ چھوڑی ہے
तुझ पे हो जाऊँगा कुर्बान तुझे चाहूँगा
تجھ پےھو جااُونگا کربان تجھےچاہونگا
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
تجھ پےھو جااُونگا کربان تجھےچاہونگا
अपने जज़्बात में नगमात रचाने के किये
اَپنےجزبات میں نگمات رچانےکےکیہ
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
میںنے دھڑکن کی طرح دل میں بسایا ہے تجھی
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करून?
?میںتسوور بھی جدائی کا بھلا کیسےکرون
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
میںنے کسمت کی لکیروںسےچرایا ہے تجھی
प्यार का बनके निगेहबान तुझे चाहूंगा
پیار کا بنکےنگیہبان تجھےچاہونگا
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा
میںتو مرکر بھی میری جان تجھےچاہونگا
तेरी हर चाप से जलते हैं खायालूँ में चिराग
تیری ھر چاپ سےپانیتےہیں کھایالوںمیں چراگ
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
جب بھی تو آمدنی جگاتا ہوا جادو آیہ
तुझको छूलूं तो ए जान-इ-तमन्ना मुझको
تجھکو چھولوںتو ئی جان -ا - تمننا مجھکو
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आये
در تک اپنے بدن سےتیری خوشبو آیہ
तू बहारों का है उन्वान तुझे चाहूंगा
تو بہاروںکا ہے اُنوان تجھےچاہونگا
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा
میںتو مرکر بھی میری جان تجھےچاہونگا
___________________
ह्या भावगीता मागे माझ्या काही खास आठवणी...
पुण्याच्या नगरीत माझी पहिली १९९०-१९९१ च्या सुमारास झाली. कोकणाच्या ऐयर-गैर ग्रॅजुयेशन पर्यंत गोव्यात होतो. घराच्या चार चवकठात खुल्या मानाने बोलण्याची संधी जवळ जवळ नसल्यातच जमा. मग, गाणे अयकणे, बघणे हाच एक उपाय होता. पण जेव्हा पुण्यात आलो, पहिली पुणे केम्प मधील हिन्दी शाळेतले मुख्य प्राध्यापक सुधाकर प्रभू काकांकडे रहायचो. इथून आयुषाचे नवीन अ-ब-क-ड चालू झाले. त्या सुमारास, प्रभात रोडला एका झेरॉक्ष च्या दुकानात मल्टिपल प्रिंट करून ठेवलेली कविता मनात टपली. मनात कायमची राहिलेली ही कविता आणि ३ खास लोकांकडून मला असंख्य मानसिक बळ, आधार, चेतना आणि एक नवीन जिध्ह असंख्य पणे वाडली. एक शिक्षक, गुरू बरोबर एक मित्र ह्या नात्याने सुध्हा असंख्य प्रेम त्यांच्याकडून मला मिळाले. प्रा. सुधाकर काका कायम हसमुक असायचे. दुसरे म्हणजेच भैईया वैद्य. त्यावेळेस ते डेक्कन बधील आपटे शाळेचे मुख्य प्राध्यापक होते. भैईया काका कायम म्हणायचे 'आपल्या जिध्हिने पुढे चाल, जग तुझ्या मागे येईल'. पोस्ट ग्रॅजुयेशन करताना तीसरे खास म्हणजेच डॉ. शेजवलकर !!!
आणि आयुषाच्या प्रत्तेक टप्प्यात ती कविता व ते तीन 'मित्र', नसा नसात जिवंत राहीले. बर्याच वर्षानंतर जेव्हा ती कविता व त्याचे स्वर/संगीत अयकले की जुन्या आठवणी उजणतात. फेसबुक वर स्टिल इमेज पधतिने रिलीस केली होती. पण पुन्हा एकदा पूर्ण विडियो द्वारे. त्याही बरोबार त्या तीन 'मैत्र' व गुरू प्राध्यापकांना शतः प्रणाम!
______________
घर असावे घरा सारखे, नकोच नुसत्या भिंती
इथे असावे प्रेम जिव्हाला, नकोच नुसती नाती.
त्या शब्दांना अर्थ असावा, नकोच नुसती वाणी
सूर जुळावे परस्परांचे, नकोत नुसती गाणी
त्या अर्थाला अर्थ असावा, नकोत नुसती नाणी
अश्रुतुनही प्रित झरावी, नकोत नुसते पाणी
या घर्ट्यातून पिल्लू उडावे, दिव्या घेउनी शक्ति
आकांक्षाचे पंख असावे, उंबरठ्यावर भक्ति
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
پھاسلے ایسی بھی ھونگےیہ کبھی سوچا نہ تھا
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
سامنے بیٹھا تھا میرےاور وہ میرا نہ تھا
वो की खुशबू की तरह फैला था मेरे चार सु
وہ کی خوشبو کی طرح پھیلا تھا میرےچار س
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
میںاُسےمحسوس کر سکتا تھا چھو سکتا نہ تھا
रात भर उस की ही आहट कान में आती रही
رات بھر اُس کی ھی آہٹ کان میں آتی رہی
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था
جھانک کر دکھا گلی میں کوئی بھی آیا نہ تھا
अक्स तो मौजूद थे पर अक्स तन्हाई के थे
اَکس تو موجود تھےپر اَکس تنہائی کےتھی
आइना तो था मगर उस में तेरा चेहरा न था
آئنا تو تھا مگر اُس میں تیرا چہرا نہ تھ
आज उस ने दर्द भी अपने अलहेदाह कर दिए
آج اُس نےدرد بھی اپنے اَلہیداہ کر دئی
आज मैं रोया तो मेरे साथ वो रोया न था
آج میںرویا تو میرےساتھ وہ رویا نہ تھا
ये सभी विरानियाँ उस के जुदा होने से थीं
یہ سبھی ورانیاں اُس کے جدا ھونے سے تھین
आँख धुंधलाई हुई थी शहर धुन्धलाया न था
آنکھ دھندھلائی ہوئی تھی شہر دھندھلایا نہ تھا
याद करके और भी तकलीफ होती थी अदीम
یاد کرکے اور بھی تکلیپھ ھوتی تھی اَدیم
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चाराह न था
بھول جانے کے سوا اب کوئی بھی چاراہ نہ تھا
_____________________
शायर : आदीं हाशमी
شایر : آدیںھاشمی
फ़नकार : गुलाम अली
فنکار : گلام اَلی
_____________________
faasle aise bhii ho.nge ye kabhii sochaa na thaa
saamane baiThaa thaa mere aur vo meraa na thaa
vo ki Khushbuu kii tarah phailaa thaa mere chaar suu
mai.n use mahasuus kar sakataa thaa chhuu sakataa na thaa
raat bhar us kii hii aahaT kaan me.n aatii rahii
jhaa.Nk kar dekhaa galii me.n ko_ii bhii aayaa na thaa
aks to maujuud the par aks tanahaa_ii ke the
aa_iinaa to thaa magar us me.n teraa cheharaa na thaa
aaj us ne dard bhii apane alahedah kar diye
aaj mai.n royaa to mere saath vo royaa na thaa
ye sabhii viiraaniyaa.N us ke judaa hone se thii.n
aa.Nkh dhu.Ndhalaa_ii hu_ii thii shahar dhu.Ndhalaayaa na thaa
yaad karake aur bhii takaliif hotii thii ‘Adeem’
bhuul jaane ke sivaa ab ko_ii bhii chaaraah na thaa
_____________________ Lyrics by Adeem Hashmi
Fankaar by Gulam Ali
_____________________
His (Wajid Ali Shah) poem Bhairavi thumri "Baabul moraa Naihar chhooto jaay" has been sung by several prominent singers, but the version most remembered is by Kundan Lal Saigal for the 1930s movie Street Singer.
This poem will express in 3 perspectives subsequently but not K.L. Saigal. Watch, hear and see the difference.
_____________________
बाबुल मोरा, नैहर छूटो ही जाए, बाबुल मोरा, नैहर छूटो ही जाए
चार कहार मिल, मोरी डोलिया सजावें (उठायें), मोरा अपना बेगाना छूटो जाए | बाबुल मोरा ...
आँगना तो पर्बत भयो और देहरी भयी बिदेश, जाए बाबुल घर आपनो मैं चली पीया के देश | बाबुल मोरा ...
_____________________
بابُل مورا، نیہر چھُوٹو ہی جائے
بابُل مورا، نیہر چھُوٹو ہی جائے
آںگنا تو پربت بھیو اؤر دیہری بھیی بِدیش
جائے بابُل گھر آپنو میں چلی پیّا کے دیش | بابُل مورا ۔۔۔
_____________________
She must go to-day, I miss her now at heart .. What must a father feel, when come The pangs of parting from his child at home?
__________________________________________
अजुनी रुसून आहे, खुलता कळी खुले ना मिटते तसेच ओठ, कि पाकळी हले ना !
समजून मी करावी, म्हणुनीच तू रुसावे मी हास सांगताच, रडताही तू हसावे ते आज का नसावे, समजावणी पटे ना धरिला असा अबोला, कि बोल बोलवेना !
का भावली मिठाची, अश्रूत होत आहे विरणार सागरी ह्या जाणून दूर राहे ? चाले अटीतटीने, सुटता अ!I सुटेना मिटविल अंतराला, ऐसी मिठी जुटे ना !
की गुड काही डाव, वरचा न हा तरंग घेण्यास खोल ठाव, बघाल्यास अंतरंग ? रुसवा असा कसा हा, ज्या आपले कळेना ? अजुनी रुसून आहे, खुलता कळी खुले ना ! _________________________
बात निकलेगी तो फिर दूर तलाक़ जाएगी
بات نکلیگی تو پھر دور تلاک جائیگی
लोग बेवजा उदासी का सबब पुच्चेंगे
لوگ بیوجا اُداسی کا سبب پچینگی
यह भी पुच्चेंगे के तुम इतनी परेशहाण क्यूँ हो
یہ بھی پچینگےکےتماتنی پریشہان کیوںھو
उंगलियाँ उठेगी सूखे हुवे बालों की तरफ
اُنگلیاںاُٹھیگی سوکھےھوےبالوںکی ترپھ
एक नज़र देखेंगे गुज़रे हुवे सालों की तरफ
ئیک نظر دکھینگےگجرےھوےسالوںکی ترپھ
चूड़ियो पर भी कई तंज़ किए जाएँगे
چوڑیو پر بھی کئی تنج کئی جائیںگی
काँपते हातहों पे भी फ़िक्र-ए-कसे जाएँगे
کانپتےھاتہوںپےبھی فکر - ئی - کسےجائیںگی
लोग ज़ालिम है हर इक बात का ताना देंगे
جالم ہے ھراک بات کا تانا دنگی
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आएँगे
باتوںباتوںمیں میرا جکر بھی لےآئیںگی
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
اُنکی باتوںکا زرا سا بھی اثر مت لینا
वरना चेहेरे के तासूर से समाज जाएँगे
ورنا چیہیرےکےتاسور سےسماج جائیںگی
चाहे कुच्छ भी हो सावालात ना करना उनसे
چاہےکچچھ بھی ھو ساوالات نا کرنا اُنسی
मेरे बारे मे कोई बात ना करना उनसे
میرےبارےمیں کوئی بات نا کرنا اُنسی
बात निकलेगी तो दूर तलाक़ जाएगी
بات نکلیگی تو دور تلاک جائیگی
__________________________
नज़्म निगार : कफील अज़र
نجم نگار : کپھیل اَجر
संगीत : जगजीत सिंग
سنگیت : جگجیت سنگ
गायक : जगजीत सिंग
گایک : جگجیت سنگ
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जब आँचल रात का लहराए,
और सारा आलम सो जाए,
तुम मुझसे मिलने, समा जलाकर,
ताजमहल में आ जाना.
तुम मुझसे मिलने, समा जलाकर,
ताजमहल में आ जाना,
जब आँचल रात का लहराए..
यह ताजमहल ज़ो चाहत की,
आँखों का सुनहेरा मोटी है,
हर रात जहाँ दो रूहों की,
खामोशी ज़िंदा होती है,
इस ताज के साए में आकर तुम,
गीत वफ़ा का दोहराना.
तुम मुझसे मिलने, समा जलाकर,
ताजमहल में आ जाना,
जब आँचल रात का लहराए..
तन्हाई है जागी-जागी सी,
माहौल है सोया-सोया हुआ,
जैसे के तुम्हारे ख्वाबों में,
खुद ताजमहल हो खोया हुआ,
हो, ताजमहल का ख्वाब तुम्ही,
यह राज़ ना मैने पहचाना.
तुम मुझसे मिलने, समा जलाकर,
ताजमहल में आ जाना,
जब आँचल रात का लहराए..
जो मौत मोहब्बत में आए,
वो जान से बढ़कर प्यारी है,
दो प्यार भरे दिल रोशन हैं,
वो रात बहुत अंधियारी है,
तुम रात के इस आँधियरे में,
बस एक झलक दिखला जाना,
तुम मुझसे मिलने, समा जलाकर,
ताजमहल में आ जाना,
जब आँचल रात का लहराए..
जब आँचल रात का लहराए,
और सारा आलम सो जाए,
तुम मुझसे मिलने, समा जलाकर,
ताजमहल में आ जाना.
तुम मुझसे मिलने, समा जलाकर,
ताजमहल में आ जाना,
तुम ताजमहल में आ जाना.
रंगुनी रंगांत सार्या रंग माझा वेगळा ! गुंतुनी गुंत्यात सार्या पाय माझा मोकळा !
कोण जाणे कोठुनी ह्या सावल्या आल्या पुढे; मी असा की लागती ह्या सावल्यांच्याही झळा !
राहती माझ्यासवे ही आसवे गीतांपरी; हे कशाचे दुःख ज्याला लागला माझा लळा!
कोणत्या काळी कळेना मी जगाया लागलो, अन् कुठे आयुष्य गेले कापुनी माझा गळा ?
सांगती 'तात्पर्य' माझे सारख्या खोट्या दिशा : 'चालणार पांगळा अन् पाहणारा आंधळा !'
माणसांच्या मध्यरात्री हिंडणारा सूर्य मी : माझियासाठी न माझा पेटण्याचा सोहळा !
__________________________
मन मनास उमगत नाही, आधार कसा शोधावा ?
स्वप्नातील पदर धुक्याचा, हातास कसा लागावा ?
मन थेंबांचे आकाश, लाटांनी सावरलेले
मन नक्षत्रांचे रान, अवकाशी अवतरलेले
मन गरगरते आवर्त, मन रानभूल, मन चकवा
मन काळोखाची गुंफा, मन तेजाचे राऊळ
मन सैतानाचा हात, मन देवाचे पाऊल
दुबळया, गळक्या झोळीत हा सूर्य कसा झेलावा
चेहरा, मोहरा ह्याचा कुणी कधी पाहीला नाही
धनी अस्तित्वाचा तरीही, ह्याच्याविण दुसरा नाही
ह्या अनोळखी नात्याचा, कुणी कसा भरवसा द्यावा
__________________________
वेगवेगळी फुले उमलली, रचुनि त्यांचे झेले; एकमेकांवरी उधळले, गेले ते दिन गेले
कदंब तरुला बांधून दोला, उंच खालती झोले; परस्परांनी दिले घेतले, गेले ते दिन गेले
हरीत बिलोरी वेलबुटीवरी, शीतरसांचे प्याले; अन्योन्यांनी किती झोकले, गेले ते दिन गेले
निर्मल भावे नव देखावे, भरुनी दोन्ही डोळे ; तू मी मिळूनी रोज पाहिले, गेले ते दिन गेले
The desire to smile has made me shed tears and pain is my only companion. Day was squandered for a living and I yearn for love... Even the stars sigh for me and dreams are nothing but a farce Which are those nimble footsteps and this smiling tenderness ? ____________