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अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है,
पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है
कितना आसान है तस्वीर बनाना औरों की,
खुद को पासे-आईना रखना कितना मुश्किल है
तुमने मंदिर देखे होंगे ये मेरा आँगन है,
एक दिया भी जलता रखना कितना मुश्किल है
चुल्लू में हो दर्द का दरिया ध्यान में उसके होंठ,
यूँ भी खुद को प्यासा रखना कितना मुश्किल है
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मौसीकार : जगजीत सिंग
फनकार : जगजीत सिंग और चित्रा सिंग
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