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गुलों में रंग भरें बाद-ए-नौबहार चले


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गुलो मे राग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आ ओ के गुलशन का कार-ओ-बार चले

क़ाफास उदास है यारो सबा से कुच्छ तो कहो
कही तो बाहर-ए-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिजरां
हमारे अश्क तेरी आकबत संवार चले

मकाम 'फ़ैज़' कोई राह मे जाँचा ही नही
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

कभी तो सुबह तेरे कुज-ए-लब से हो आगाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्काबार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएगे गम-गुसार चले

हुज़ूर-ए-यार हूइ दफ़्तर-ए-जुनून की तलब
गिरह मे ले के गिरेबान का तार तार चले
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 शायर : फ़िज़ अली फ़िज़
फनकार : मेहँदी हसन

अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है



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अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है,
पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है

कितना आसान है तस्वीर बनाना औरों की,
खुद को पासे-आईना रखना कितना मुश्किल है

तुमने मंदिर देखे होंगे ये मेरा आँगन है,
एक दिया भी जलता रखना कितना मुश्किल है

चुल्लू में हो दर्द का दरिया ध्यान में उसके होंठ,
यूँ भी खुद को प्यासा रखना कितना मुश्किल है
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मौसीकार : जगजीत सिंग
फनकार : जगजीत सिंग और चित्रा सिंग



देखना उनका कनखियो से


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देखना उनका कनखियो से इधर देखा किये
अपनी आहें कम असर का हम असर देखा किये

जो बा-ज़ाहिर हमसे सदियों की मुसाफत पर रहें
हम उन्हें हर गाम अपना हमसफ़र देखा किये

लम्हा-लम्हा वक़्त का सैलाब चढ़ता ही गया
रफ़्ता-रफ़्ता डूबता हम अपना घर देखा किये

कोई क्या जाने के कैसे हम भारी बरसात में
नज़रें आतिश अपने ही दिल का नगर देखा किये

सुन के वो ‘शहज़ाद’ के आसार सर धुनता रहा
थाम कर हम दोनों हाथों से जिगर देखा किये
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शायर : फरहत शेहज़ाद
फनकार : महेंदी हसन

ये बातें झुटि बातें हैं


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ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं

तुम इंशजी का नाम ना लो
क्या इंशजी सौदाई हैं
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें

है लाखों रोग ज़माने में
क्यों इश्क़ है रुसवा बेचारा
हैं और भी वजे वहशत की
इंसान को रखती दुखियारा
हन बेकल बेकल रहता है
वो प्रीत में जिस ने दिल हरा
पर शाम से लेकर सुबो तलाक़
यून कौन फिरे है आवारा
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें

गर इश्क़ किया है तब क्या है
क्यों शाद नहीं आबाद नहीं
जो जाम लिए बिन चल ना सके
ये ऐसी भी उस्ताद नहीं
फाइंड मोरे लिरिक्स अट ववव.स्वीत्सल्यरीक्स.कॉम
ये बात तो तुम भी मानो गे
वो कैस नहीं फरहाद नहीं
क्या हिजर का दारू मुश्किल है
क्या फास्ल मुस्ते याद नहीं
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें

जो हम से कहो हम करते हैं
क्या इंशा को समझना है
उस लड़की से भी कहलेंगे
गो अब कुच्छ और ज़माना है
या छ्चोड़ें या तकमील करें
ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख धनदा है
ये कैसा तानाबाना है
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं

तुम इंशजी का नाम ना लो
क्या इंशजी सौदाई हैं
ये बातें झुटि बातें हैं
ये लोगों ने फैलाई हैं
ये बातें, ये बातें
ये बातें, ये बातें
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फनकार/मौसीकार : गुलाम अली

दिल की बात लबों पर लाकर


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दिल की बात लबों तक लाकर अब तक दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं

बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आसू बहते हैं

एक ह्यूम आवारा केहेना कोई बड़ा इल्ज़ाम नही
दुनिया वाले दिल वालों को और बहूत कुछ कहते हैं

जिसकी खतीर शहर भी चोरदा जिसके लिए बदनाम हुए
आज वोही हुंसे बेगाने बेगाने से रहते हैं

वो जो अभी रहगीज़ार से चक-ए-ग़रेबान गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को "जालीब जालीब कहते हैं
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शायर : हबीब ज़ालीब
फनकार/मौसीकार : गुलाम अली

खूबरूयों से यारियाँ ना गयीं


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फनकार और मौसीकार
गुलाम अली

जब तेरे नैन मुस्कुराते हैं


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जब तेरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं

क्यूँ शिकन डालते हो माथे पर
भूल कर आ गए हम जाते हैं

कश्तियाँ यूँ भी डूब जाती हैं
नाख़ुदा किसलिये डराते हैं

इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं

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फनकार और मौसिकार : मेहन्दी हसन

बिन बारिष बरसात ना होगी


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बिन बारिष बरसात ना होगी
रात गयी तो रात ना होगी

राज़-इ-मोहब्बत तुम मत पूछो
मुझसे तो ये बात ना होगी

किस से दिल बहलाओगे तुम
जिस दम मेरी ज़ात ना होगी

अश्क भी अब ना पैद हुए हैं
शायम अब बरसात ना होगी

यूं देखेंगे आरिफ उसको
बीच में अपनी ज़ात ना होगी
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शायर : खालिद महमूद आरिफ़
मौसीकार/फनकार : गुलाम अली

दिल में एक ल़हेर सी उठी हैं अभी


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दिल में एक ल़हेर सी उठी हैं अभी
कोई ताज़ा हवा चली हैं अभी

शोर बरपा है खाना ए दिल में
कोई दीवार सी गिरी हैं अभी

कुच्छ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोठ भी नयी हैं अभी

भारी दुनियाँ में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी हैं अभी

तू शरीक-ए-सुख्हन नहीं हैं तो क्या
हम सुख्हन तेरी खामोशी हैं अभी

याद के बेनिशान जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही हैं अभी

शहेर के बेचराग़ गलियों में
ज़िंदगी तुझ को ढ्नडती हैं अभी

सो गये लोग उस हवेली के
एक खिडकी मगर खुली है अभी

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर मैं रात जागती है अभी

वक़्त अच्छा भीइ आएगा 'नसीर'
गम ना कर ज़िंदगीइ पा.डी है अभी
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शायर : नसीर काज़मी
फनकार/मौसीकार : गुलाम अली

धुवा बनाके फ़िज़ाओ में


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धुवा बनाके फ़िज़ाओ में उड़ा दिया मुझको
मैं जल रहा था किसी ने ब्झहा दिया मुझको

खड़ा हून आज भी रोटी के चार हरफ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको

सफेद संग की चादर लपेट कर मुझपर
फसीने शहर से किसी ने सज़ा दिया मुझको

मैं एक ज़ररा बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीन पर गिरा दिया मुझको
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मौसीकार : जगजीत सिंग
फनकार : लता मंगेशकर


मिलकर जुदा हुवे तो


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मिलकर जुदा हुए तो ना सोया करेंगे हम
एक दूसरे के याद में रोया करेंगे हम

आँसू चालक चालक के सताएँगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम

जब दूरियों की याद दिलों को जलाएगी
जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम

गर दे गया दगा हमें तूफान भी 'क़तील'
साहिल पे कश्टियों को दुबोया करेंगे हम
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फनकार : जगजीत सिंग और चित्रा सिंग