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A+S ,
,
7/26/2010 12:50:00 PM
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सखी मंद झाल्या तारका, आता तरी येशील का ?
मधुरात्र मंथर देखणी, आला तशी सुनी
हा प्रहर अंतिम राहिला, त्या अर्थ तू देशील का ?
हृदयात आहे प्रीत अन् ओठात आहे गीतही
ते प्रेमगाणे छेडणारा, सूर तू होशील का ?
जे जे हवेसे जीवनी, ते सर्व आहे लाभले
तरीही उरे काही उणे, तू पूर्तता होशील का ?
बोलावल्यावाचूनही मृत्यु जारी आला इथे
थांबेल तोही पळबरी, पण सांग तू येशील का ?
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गीत : सुधीर मोधे
संगीत : राम फाटक
स्वर : पंडित भिसेन जोशी (पुणे आकाशवाणीवरील प्रथम प्रसारण)
मधुरात्र मंथर देखणी, आला तशी सुनी
हा प्रहर अंतिम राहिला, त्या अर्थ तू देशील का ?
हृदयात आहे प्रीत अन् ओठात आहे गीतही
ते प्रेमगाणे छेडणारा, सूर तू होशील का ?
जे जे हवेसे जीवनी, ते सर्व आहे लाभले
तरीही उरे काही उणे, तू पूर्तता होशील का ?
बोलावल्यावाचूनही मृत्यु जारी आला इथे
थांबेल तोही पळबरी, पण सांग तू येशील का ?
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गीत : सुधीर मोधे
संगीत : राम फाटक
स्वर : पंडित भिसेन जोशी (पुणे आकाशवाणीवरील प्रथम प्रसारण)
Posted by
A+S ,
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7/26/2010 12:37:00 PM
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बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब हैं तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छ्चीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे आई दिल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
उन की आँखों ने खुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी मया_इल कभी ऐसी तो न थी
अक्स-ए-रुख्ह-ए-यार ने किस से है तुझे चमकाया
तब तुझ में माह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है “ज़फ़र” से हर बार
खु तेरी हूर-ए-शमा_इल कभी ऐसी तो न थी
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शायर : बहादुर शाह ज़फ़र
फनकार : मेहदी हसन
जैसी अब हैं तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छ्चीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे आई दिल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
उन की आँखों ने खुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी मया_इल कभी ऐसी तो न थी
अक्स-ए-रुख्ह-ए-यार ने किस से है तुझे चमकाया
तब तुझ में माह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है “ज़फ़र” से हर बार
खु तेरी हूर-ए-शमा_इल कभी ऐसी तो न थी
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शायर : बहादुर शाह ज़फ़र
फनकार : मेहदी हसन
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