This was the movie Albela that I had seen-watched almost 35 years back in Panaji, at
. Of 'course, the movie in every perspective is wonderful. Amongst all, one song has well 'impacted' on my mind.
धीरे से आजा री अँखियाँ में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
छ्होटे से नैनन की बगियाँ में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
ओ ...
लेकर सुहाने सपनों की कलियाँ, सपनों की कलियाँ
आके बसा दे पलकों की गलियाँ, पलकों की गलियाँ
पलकों की छ्होटी सी गलियाँ में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
धीरे से ...
ओ ...
तारों से च्छूप कर तारों से चोरी, तारों से चोरी
देती है रजनी चंदा को लॉरी, चंदा को लॉरी
हँसता है चंदा भी निंदियन में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
धीरे से ...
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धीरे से आजा री अँखियाँ में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
छ्होटे से नैनन की बगियाँ में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
ओ ...
आँखें तो सब की हैं इक जैसी
जैसी अमीरों की, ग़रीबों की वैसी
पलकों की सूनी सी गलियाँ में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
धीरे से ...
ओ ...
जागती है अँखियाँ सोती है क़िस्मत, सोती है क़िस्मत
दुश्मन ग़रीबों की होती है क़िस्मत, होती है क़िस्मत
दम भर ग़रीबों की कुटियाँ में
निंदिया आजा री आजा, धीरे से आजा
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अलबेला
संगीत : सी. रामचंद्र
स्वर : लता मंगेशकर और रामचंद्र चिताळकर