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ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं
क्यूँ शिकन डालते हो माथे पर
भूल कर आ गए हम जाते हैं
कश्तियाँ यूँ भी डूब जाती हैं
नाख़ुदा किसलिये डराते हैं
इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं
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फनकार और मौसिकार : मेहन्दी हसन
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