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सांझ ढले गगन तले
हम कितने एकाकी
सांझ ढले गगन तले
हम कितने एकाकी
छ्होड चले नैनो को
किरणों के पाख़ी
पाठ की जाली से झाँक रही तीन कलियाँ - २
गंध भारी गुनगुण में मगन हुई तीन कलियाँ
इतने में तिमिर डासा सपने ले नयनो में
कलियों के आँसुओं का कोई नहीं साथी
छ्चोड़ चले नयनो को
किरणों के पाख़ी
सांझ ढले गगन तले
जुगनूउ का पाट ओढे आएगी रात अभी - २
निशिगंधा के सुर में कह देगी बात सभी
कपटा है मान जैसे डाली अंबावा की
छ्होड चले नयनो को
किरणों के पाख़ी
सांझ ढले गगन तले
________________
चित्रपाट : उत्सव
शायर : वसंत देव
संगीतकार : लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
स्वर : सुरेश वाडकर
हम कितने एकाकी
सांझ ढले गगन तले
हम कितने एकाकी
छ्होड चले नैनो को
किरणों के पाख़ी
पाठ की जाली से झाँक रही तीन कलियाँ - २
गंध भारी गुनगुण में मगन हुई तीन कलियाँ
इतने में तिमिर डासा सपने ले नयनो में
कलियों के आँसुओं का कोई नहीं साथी
छ्चोड़ चले नयनो को
किरणों के पाख़ी
सांझ ढले गगन तले
जुगनूउ का पाट ओढे आएगी रात अभी - २
निशिगंधा के सुर में कह देगी बात सभी
कपटा है मान जैसे डाली अंबावा की
छ्होड चले नयनो को
किरणों के पाख़ी
सांझ ढले गगन तले
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चित्रपाट : उत्सव
शायर : वसंत देव
संगीतकार : लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
स्वर : सुरेश वाडकर
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