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महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गई


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तेरी बात ही सुनाने आये, दोस्त भी दिल ही दुखाने आये
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं तेरे आने का ज़माने आये
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हो आप
महफ़िल में इस ख़याल से फिल आ गया हूँ मैं

महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गई
हमने बचाई लाख मगर फिर उधर गई

उनकी नज़र में कोई तो जादू ज़ुरूर है
जिस पर पड़ी, उसी के जिगर तक उतर गई

उस बेवफा की आँख से आंसू झलक पड़े
हसरत भारी निगाह बड़ा काम कर गई

उनके जमाल-इ-रुख पे उन्ही का जमाल था
वोह चल दिए तो रौनक-इ-शाम-ओ-सहर गई

उनको खबर करो के है बिस्मिल करीब-इ-मर्ग
वोह आयेंगे ज़ुरूर जो उन तक खबर गई
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शायर : आगा बिसमिल
मौसीकार और फनकार : गुलाम अली

काली घोड़ी द्वार खड़ी

 
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सा नि रे सा
सा रे गा मा पा ढा नि सा
सा नि ढा पा मा गा रे सा
सा नि रे सा

काली घोड़ी द्वार खड़ी...खड़ी रे
मूँग से मोरी माँग भारी
बरजोरी सैय्या ले जावे
तक़ित भाई तगारी नागरी....टाटा ढा.

काली घोड़ी द्वार खड़ी...खड़ी रे

भीड़ के बीच अकेले मितवा
जंगल बीच महेक गये फुलावा
कौन ए तगवा बैयया धरी
तक़ित भाई तगारी नागरी....टाटा ढा.


बाबा के द्वारे भेजे हर करे
अम्मा को मीठी बतियां समज़हरे
इतवान से मोक हरी
तक़ित भाई तगारी नागरी....टाटा ढा.

सा गा मा ढा नि
सा ढा नि मा ढा मा गा सा
सा गा मा ढा नि सा
सा नि ढा मा गा सा
नि सा गा मा ढा नि
नि ढा मा गा सा नि
सा रे सा गा मा सा
मा ढा नि सा गा मा
मा ढा नि सा रे सा
मा ढा नि सा रे सा

काली घोड़ी पे गोरा सैय्या चमके
सैय्या चमके
चमक चमक चमके
काली घोड़ी पे गोरा सैय्या चमके
कजरारे मेखा में बीजूरी दमके
सुध बुध बिसर गयी हमारी
बरजोरी सैय्या ले जावे
तक़ित भाई तगारी नागरी....टाटा ढा.

काली घोड़ी दौड़ पड़ी

लाज चुनरिया उड़ उड़ जावे
अंगा अंगा की रंग रचाए
उनके कंधे लत बिखरी

काली घोड़ी दौड़ पड़ी

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