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काश ऐसा कोई मंजर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता...||धृ||
जमा करता जो मैन आए हुए संग
सर छुपाने के लिए घर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता... ||१||
इस पलंगदी पे बहुत तन्हा हुं
काश मै सब के बराबर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता.... ||२||
उसने उलझा दिया दुनिया मे मुझे
वर्ना एक और कलंदर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता.... ||३||
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शायर : ताहिर फ़राज़
मौसिकार : हरिहरन
फनकार : हरिहरन
मेरे कांधे पे तेरा सर होता...||धृ||
जमा करता जो मैन आए हुए संग
सर छुपाने के लिए घर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता... ||१||
इस पलंगदी पे बहुत तन्हा हुं
काश मै सब के बराबर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता.... ||२||
उसने उलझा दिया दुनिया मे मुझे
वर्ना एक और कलंदर होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
काश ऐसा कोई मंजर होता.... ||३||
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शायर : ताहिर फ़राज़
मौसिकार : हरिहरन
फनकार : हरिहरन
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