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धुवा बनाके फ़िज़ाओ में उड़ा दिया मुझको
मैं जल रहा था किसी ने ब्झहा दिया मुझको
खड़ा हून आज भी रोटी के चार हरफ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको
सफेद संग की चादर लपेट कर मुझपर
फसीने शहर से किसी ने सज़ा दिया मुझको
मैं एक ज़ररा बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीन पर गिरा दिया मुझको
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मौसीकार : जगजीत सिंग
फनकार : लता मंगेशकर
मैं जल रहा था किसी ने ब्झहा दिया मुझको
खड़ा हून आज भी रोटी के चार हरफ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको
सफेद संग की चादर लपेट कर मुझपर
फसीने शहर से किसी ने सज़ा दिया मुझको
मैं एक ज़ररा बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीन पर गिरा दिया मुझको
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मौसीकार : जगजीत सिंग
फनकार : लता मंगेशकर
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