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सोचते और जागते...

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सोचते और जागते साँसों का एक दरिया हून मैं,
अपने गुलदस्ता किनरो के लिए बहता हू मैं

जल गया सारा बदन, इन मासूम की आग मे,
एक मासूम रूह का है, जिसमें अब ज़िंदा हू मैं

मेरे होंटो का तबसूम, दे गया धोका तुझे,
तुमने मुझको बाग जाना, देखले सहारा हू मैं.

देखे मेरी पजीराई को आब आता है कौन,
लम्हा भर तो वक़्त की, दहलीज़ पर आया हू मैं.
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फनकार / मौसीकार : गुलाम अली