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देखना उनका कनखियो से इधर देखा किये
अपनी आहें कम असर का हम असर देखा किये
जो बा-ज़ाहिर हमसे सदियों की मुसाफत पर रहें
हम उन्हें हर गाम अपना हमसफ़र देखा किये
लम्हा-लम्हा वक़्त का सैलाब चढ़ता ही गया
रफ़्ता-रफ़्ता डूबता हम अपना घर देखा किये
कोई क्या जाने के कैसे हम भारी बरसात में
नज़रें आतिश अपने ही दिल का नगर देखा किये
सुन के वो ‘शहज़ाद’ के आसार सर धुनता रहा
थाम कर हम दोनों हाथों से जिगर देखा किये
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शायर : फरहत शेहज़ाद
फनकार : महेंदी हसन
अपनी आहें कम असर का हम असर देखा किये
जो बा-ज़ाहिर हमसे सदियों की मुसाफत पर रहें
हम उन्हें हर गाम अपना हमसफ़र देखा किये
लम्हा-लम्हा वक़्त का सैलाब चढ़ता ही गया
रफ़्ता-रफ़्ता डूबता हम अपना घर देखा किये
कोई क्या जाने के कैसे हम भारी बरसात में
नज़रें आतिश अपने ही दिल का नगर देखा किये
सुन के वो ‘शहज़ाद’ के आसार सर धुनता रहा
थाम कर हम दोनों हाथों से जिगर देखा किये
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शायर : फरहत शेहज़ाद
फनकार : महेंदी हसन
June 23, 2012 at 9:01:00 AM GMT+5:30
this Ghazal. A beautiful composition in Taal Rupak.
June 23, 2012 at 9:02:00 AM GMT+5:30
Wah wah wah. Ab aur kya kahein. Taalon ke baadshah ( Anil Kaul ji ) ne sab keh diya. I second him.
June 23, 2012 at 9:02:00 AM GMT+5:30
Thanks Naina ji for your sweet remark .
June 23, 2012 at 9:03:00 AM GMT+5:30
awsm...
June 23, 2012 at 9:04:00 AM GMT+5:30
NICE
June 29, 2012 at 8:29:00 PM GMT+5:30
Wow... Thanks Abhijeet Dalvi! with all the help from u, finally my ears got the thirst quenched... after a long long time!! Thanks again... :)