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अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है,
पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है
कितना आसान है तस्वीर बनाना औरों की,
खुद को पासे-आईना रखना कितना मुश्किल है
तुमने मंदिर देखे होंगे ये मेरा आँगन है,
एक दिया भी जलता रखना कितना मुश्किल है
चुल्लू में हो दर्द का दरिया ध्यान में उसके होंठ,
यूँ भी खुद को प्यासा रखना कितना मुश्किल है
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मौसीकार : जगजीत सिंग
फनकार : जगजीत सिंग और चित्रा सिंग
July 31, 2012 at 6:28:00 PM GMT+5:30
apratim
August 1, 2012 at 11:53:00 AM GMT+5:30
माझें आवडते गाणे! अभिजित! खूपच सुंदर चित्रफिती तून गाणे पेश केलेस! मजा आ गया! धन्यवाद! शुभदिन! :)))))
August 1, 2012 at 11:55:00 AM GMT+5:30
Another great piece from ur amphitheater... Salam.
August 1, 2012 at 11:55:00 AM GMT+5:30
Fantastic....
August 1, 2012 at 3:31:00 PM GMT+5:30
Bahot din ke baad aap ne kuchh sunvaya hai.....maza aa gaya....and to listen to Jagjit Singh.....wow....!!!!!!!